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क्या लाहौर भारत का हिस्सा होना चाहिए था?

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क्या लाहौर भारत का हिस्सा होना चाहिए था?

"जिन्हें लाहौर नहीं देखा, वो जन्मे ही नहीं" — यह कहावत पंजाबी में बहुत मशहूर है। पुराने समय से ही लाहौर को "हिंदुस्तान का दरवाज़ा" कहा जाता था, क्योंकि यह मध्य एशिया और अरब से आने वाले यात्रियों का मुख्य मार्ग था। दिल्ली तक पहुंचने के लिए अक्सर लाहौर होकर ही जाना होता था। लेकिन 1947 में हुए बंटवारे के बाद लाहौर पाकिस्तान के हिस्से में चला गया।

लाहौर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • बंटवारे से पहले लाहौर में हिंदुओं और सिखों की बड़ी आबादी थी।
  • 1941 की जनगणना के अनुसार, लाहौर की 40% आबादी गैर-मुस्लिम थी।
  • लगभग 80% संपत्तियों की मालिकियत भी गैर-मुसलमानों के पास थी।
  • इसके कारण ऐसा अनुमान लगाया गया था कि लाहौर भारत का हिस्सा बनेगा।

लाहौर की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत

लाहौर में कई प्रमुख मंदिर और धार्मिक स्थल थे जैसे:

  • आर्य समाज मंदिर, महादेव मंदिर, शीतला माता मंदिर
  • श्री कृष्ण मंदिर, दूध वाली माता मंदिर
  • महाराजा रणजीत सिंह की समाधि, डेरा साहिब
  • जैन मंदिर (दिगंबर और श्वेतांबर)
  • श्री गुरु रामदास जी भाभिया
  • लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी में संस्कृत और हिंदी की 8671 पांडुलिपियाँ आज भी सुरक्षित हैं।

इसके अलावा, लाहौर की अर्थव्यवस्था पर भी हिंदू और सिख व्यापारियों का प्रभुत्व था। वहाँ के प्रमुख अस्पताल और कॉलेज भी इन्हीं समुदायों द्वारा संचालित थे जैसे:

  • श्री गंगाराम अस्पताल
  • गुलाब देवी अस्पताल
  • जानकी देवी अस्पताल
  • दयाल सिंह कॉलेज

फिर लाहौर पाकिस्तान में कैसे गया?

बंटवारे के समय ब्रिटेन से सिरिल रेडक्लिफ नामक व्यक्ति को बुलाया गया था, जिसे भारत-पाकिस्तान की सीमा रेखा तय करने का जिम्मा दिया गया। रेडक्लिफ ने कभी भारत देखा नहीं था और न ही भारतीय संस्कृति की जानकारी थी। उन्हें सिर्फ 10–12 दिन में नक्शा तैयार करने को कहा गया।

रेडक्लिफ कमीशन द्वारा जो सीमा रेखा बनाई गई, उसे आज हम रेडक्लिफ लाइन कहते हैं। इसी रेखा के अनुसार तय किया गया कि कौन से क्षेत्र भारत में और कौन से पाकिस्तान में जाएंगे।

लाहौर पर अंतिम फैसला

12 अगस्त 1947 को, लाहौर में अफवाह फैली कि यह भारत का हिस्सा बनने जा रहा है। इस खबर के बाद वहां दंगे भड़क उठे। सिखों और हिंदुओं का बड़े पैमाने पर कत्लेआम हुआ। हालात इतने बिगड़ गए कि गवर्नर जेनकिंस ने लॉर्ड माउंटबेटन को फौज भेजने के लिए टेलीग्राम किया। कई पुलिसकर्मी भी हत्याओं में शामिल थे। एक मुस्लिम नेता लियाकत अली ने नारा दिया:

"हँस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान"
यह नारा लाहौर की गलियों में गूंजने लगा। पत्रकार कुलदीप नैयर ने बताया था कि रेडक्लिफ से हुई बातचीत में उन्होंने स्वीकार किया कि पाकिस्तान को कोई बड़ा शहर न मिलने के कारण उन्होंने लाहौर पाकिस्तान को दे दिया।

अन्य विवादित फैसले

  • फिरोजपुर और गुरदासपुर, जो रेडक्लिफ लाइन के अनुसार पाकिस्तान में जा रहे थे, उन्हें लॉर्ड माउंटबेटन के हस्तक्षेप से भारत में शामिल किया गया।
  • सेना और वायुसेना का बंटवारा भी हुआ:    
      नेवी की दो यूनिट भारत और एक पाकिस्तान को दी गई।
      10 में से 8 स्क्वाड्रन भारत को, 2 पाकिस्तान को मिले।

कश्मीर का संदर्भ

3 अगस्त को गांधी जी ने कश्मीर के महाराजा हरि सिंह से मुलाकात की और प्रधानमंत्री रामचंद्र काक को हटाने की सलाह दी।12 अगस्त को काक को हटा दिया गया। यदि गांधी जी महाराजा से भारत में विलय की गुजारिश करते, तो शायद आज की कश्मीर समस्या ना होती।माउंटबेटन ने जून 1947 में कश्मीर जाकर महाराजा को पाकिस्तान में शामिल होने की सलाह दी थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।

निष्कर्ष

रेडक्लिफ द्वारा जल्दबाज़ी में और बिना स्थानीय जानकारी के बनाए गए नक्शे की वजह से लाहौर पाकिस्तान का हिस्सा बना। यह निर्णय न केवल लाहौर के इतिहास को बदल गया, बल्कि वहाँ के लाखों हिंदू और सिखों को अपनी ज़मीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी बनना पड़ा। जो शहर कभी भारत की सांस्कृतिक और व्यापारिक पहचान था, वह अब इतिहास के पन्नों में बंटवारे के दर्दनाक उदाहरण के रूप में दर्ज है।



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